Wednesday, December 29, 2010

NAMAMI SHANKARA BHAWANI SHANKARA

NAMAMI SHANKARA BHAWANI SHANKARA
UMA MAHESHWARA TAVA SHARANAM
NAMO NAMO SHIVA GURU MAHADEVA
OMKARESHWARA TAVA SHARANAM
NAMAMI SHANKARA BHAWANI SHANKARA
UMA MAHESHWARA TAVA SHARANAM
OM SHIVA OM SHIVA PARATPARA SHIVA
OMKARESHWARA TAVA SHARANAM

I bow down to Lord Shiva Shankara (doer of good), The Lord of Bhawani; Lord of Uma, I surrender to you (I take refuge in Thee) I bow down to the Lord Shiva Shankara, The Lord of Bhawani; Lord of Uma, I surrender to you. I bow down to the Lord Shiva Shankara, The Lord of Bhawani; Lord of Uma, I surrender to you. Om Shiva, Om Shiva, the Supreme of the most Supreme, Shiva, the personification of Om, I surrender to you.

OM NAMAH SHIVAYA

Hari Om Shiva Hara Shankara Gaurisham‌

Hari Om Shiva Hara Shankara Gaurisham‌,
Vande Ganga Dhara Misham Shiva, Rudram Pashupati Mishanam
Kalve Kashi Pura Natham Bhajo Bhala Lochna Parmananda
Shree Neelkantha Tavm Sharnam,
Shiv Asura Nikandana Bhave Dukh Bhanjana
Sevak Ke Partipala Bam Avagamana Mithao Bole Shankara Bhaje Shiva Barambaara,
Bam Jai Shiv Shambhu Sada Shiv Shambhu Hari Hara Sada Sada Shiv Shambhu.

To Shiv Shankar, the Swami of Gauri, we bow to him who has the Ganga in his dreadlocks. To Rudra Pashupati, the Swami of all beings, to the God of Kashi, Banaras, has the three eyes, and is always in bliss. The God with the blue hroat, we bow to his feet.
To you the slayer of all the demons, putting an end to all the sufferings.
you are the protector of your devotees. Please finish the circle of birth and rebirth. Always sing and praise his name, Shiv Hare Shambhu.

OM NAMAH SHIVAYA

SHIVA SHAMBO SHIVA SHAMBO

SHIVA SHAMBO SHIVA SHAMBO
KALYANA MURTI NAMO NAMAH
NAMO NAMAH NAMO NAMAH
GIRIJAPATI GANGA DHARE HARA HARA
HARA HARA HARA HARA NAMO NAMAH
KALYANA MURTI NAMO NAMAH
NAMO NAMAH NAMO NAMAH
SHIVA SHAMBO.

O benevolent Lord, benevolent Lord,You who are the personification of all that is good. I bow down to you again and again. Husband of Girija, daughter of the mountain, Carrying Ganga in your locks. Shiva Hara Hara, you take away all the miseries of life. I bow down to you again and again. 

OM NAMAH SHIVAYA

Sunday, December 12, 2010

अपील

अपील

प्रिये साथियों, मेरे द्वारा पोस्ट की गई किसी भी चित्र, आरती, चालीसा या अन्य में त्रुटी हो गई हो तो, जो की संजोगवश होगी, कृपया उसे सुधरवाने में हमारी मदद करे. आपकी कृपा होगी. धन्यवाद.

आपका

#रोमिल

Tuesday, August 31, 2010

शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं शिव?

शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं शिव?



भस्म शिव का प्रमुख वस्त्र है। शिव का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है। संतों का भी एक मात्र वस्त्र भस्म ही है। अघोरी, सन्यासी और अन्य साधु भी अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं।


क्या यह सिर्फ आडंबर है या इसके पीछे कोई महत्वपूर्ण विज्ञान है। भस्म हमारे शरीर के लिए किस तरह फायदेमंद हो सकती है।

भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्मी त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है।


भस्मी धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढ़ालना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है।

Friday, August 6, 2010

शिव पूजा में जल का महत्व

शिव पूजा में जल का महत्व

पवित्र श्रावण माह शुरु हो गया है। इस माह में भगवान भोलेनाथ की आराधना का विशेष महत्व है। शिव मंदिरों में भक्तों का ताँता और 'बम भोले' के जयकारे गूँजने लग गए हैं। श्रावण माह के विशेष दिनों में भगवान शिव का विविध रूपों में श्रृंगार होगा। इन दिनों श्रद्धालु व्रत-उपवास रख शिव आराधना में लीन रहेंगे। साथ ही कावड़ यात्रा का दौर भी शुरू हो जाएगा।

श्रावण माह का महत्व : पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रावण माह में ही समुद्र मंथन किया गया था। मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला। भगवान शंकर ने इस विष को अपने कंठ में उतारकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव-उपासना से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।



जल चढ़ाने का महत्व : भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है।


शिव स्वयं जल हैं : शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं।


संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्*।

भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः ॥



अर्थात्* जो जल समस्त जगत्* के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन्* उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए।



इन दिनों सभी शिव मंदिरों के आसपास पूजन सामग्रियों की दुकानें सजने लगती है। भगवान भोलेनाथ के प्रिय बिल्व पत्र से लेकर धतूरा और तरह-तरह के पुष्पों की मालाएँ लेकर भक्त पूजा के लिए तैयार हैं। पूजा में रुद्राक्ष का भी विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार भगवान रूद्र की आँखों से गिरे आँसू से रुद्राक्ष का जन्म हुआ इसलिए रुद्राक्ष भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है।
__________________

पावन शिव चालीसा

।।पावन शिव चालीसा।।

।।दोहा।।

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

सावन मास में शिव चालीसा पढ़ने का अलग ही महत्व है। शिव चालीसा के माध्यम से आप अपने सारे दुखों को भूला कर भगवान शिव की अपार कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
__________________

कैसे करें सावन सोमवार?

कैसे करें सावन सोमवार?


सावन सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सोमवार, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष। सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। इस व्रत को सावन माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है।


सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।



सावन सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएँ।
गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें।
घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।




पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें- सावन सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सोमवार, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष। इस व्रत को सावन माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है।


'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'


इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें-
'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्*।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्*॥


ध्यान के पश्चात 'ऊँ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा 'ऊँ नमः शिवायै' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें।


पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें।


तत्पश्चात आरती कर प्रसाद वितरण करें।


इसकें बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।




सावन सोमवार व्रत फल

सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती की अनुकम्पा बनी रहती है।


जीवन धन-धान्य से भर जाता है।


सभी अनिष्टों का भगवान शिव हरण कर भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।
__________________

ऐसे करें भगवान शिव की पूजा

भगवान शिव की पूजा-अर्चना का महीना श्रावण

ऐसे करें भगवान शिव की पूजा

भगवान शिव की पूजा-अर्चना का महीना श्रावण मास शुरू हो गया है। शिवालयों में इसके लिए विशेष तैयारियाँ की गई हैं। सोमवार को अलसुबह से ही शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगेगी तथा बम-बम भोले से मंदिर गुंजायमान होंगे।

इस बार सावन के पाँच सोमवार पड़ने से सावन मास का विशेष महत्व और भी बढ़ गया है। जिसमें तीन कृष्ण पक्ष और दो शुक्ल पक्ष में होंगे। ज्योतिर्विद हिंगे के अनुसार शिव के त्रिशूल की एक नोक पर काशी विश्वनाथ की नगरी का भार है। उसमें श्रावण मास भी अपना विशेष महत्व रखता है। इसलिए श्रावण का महीना अधिक फल देने वाला होता है।

इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। जिसमें प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी, दूसरे सोमवार को सफेद तिल्ली एक मुट्ठी, तीसरे सोमवार को खड़े मूँग की एक मुट्ठी, चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी और पाँचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाने जाते हैं।

पं. हिंगे के अनुसार महिलाएँ श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना एवं व्रत अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं। सभी व्रतों में सोलह सोमवार का व्रत श्रेष्ठ है। इस व्रत को वैशाख, श्रावण, कार्तिक और माघ मास में किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता है। इस व्रत की समाप्ति सत्रहवें सोमवार को सोलह दंपति को भोजन व किसी वस्तु का दान देकर उद्यापन किया जाता है।

श्रावण माह में एक बिल्वपत्र शिव को चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है।

भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए शिव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भाँग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय है। श्रावण मास में शिवभक्तों द्वारा शिवपुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं जाप किया जाता है। श्रावण मास में इसके करने से अधिक फल प्राप्त होता है।
__________________

Monday, July 26, 2010

Shri Shiv Chalisa

Jai Ganesh Girija suvan, Mangal mul sujan
Kahit Ayodhya das tum, dev abhay vardan

Jai Girijapati din dayala,
sada karat santan pritpala.
Bhol chahdrama sohat nike,
kanan kundal nag phani ke.

Ang gaur, shir gangabanae,
mundamal tan chhar lagae.
Vastra khal bagambar sohe,
chhavi ko dekh nag muni mohe.

Maina matu ki havai dulari,
bam ang sohat chhavi niyari
Kar men trishul sohat chhavi bhari
karai sada shatrun shahkari

Nandi Ganesh sohain tahan kaise,
sagar madhya kamal hai jaise.
Kartik shyam aur ganarau,
ya chhavi ko kahi jat na kau.

Devani jab hi ai pukara,
tabahin dukh Prabhu ap nivara.
Kiya upadrav Tarak bhari,
devani sab mili turnahin juhari.

Turant shadanan ap pathayo,
lay nimesh mahin mari girayo.
Ap jaladhar asur sanhara,
suyash tumhara vidit sansara.

Tripurasur sang yudh machai,
sabahin kripa kari linh bachai.
Kiya tapahin Bhagirath bhari,
purve pratigya tasu purari.

Davan manan tum sam kou nahin,
sevak ustuti karat sadai.
Ved nam mahima tab gai,
akath anadi bhed nahin pai

Pragateu dadi-manthan te jvala,
jare surasur bahe bihala.
Dindayal tahan kari sahai,
Nilkanth tab nam kahai.

Pujan Ramchandra jab kinha,
jit ke Lanka Vibhishan dinha.
Sahas kamal men ho rahe dhari,
kinha pariksha tabahi purari

Ek kamal prabhu rakhyau gohi,
kamal nayan pujan chahan soi
Kathin bhakti dekhi Prabhu Shankar,
bhaye prasan diye ichhatvar.

Jai Jai Jai Anant avinasi
karat kripa sab ke ghat vasi
Dushat sakal nit mohi satavaen,
bhramat rahe mohi chain na avaen.

Trahi trahi main nath pukarun,
yahi avasari mohi, ani ubaro.
Lai trishul shatruni ko maro,
sankat se mohe ani ubaro.

Mata pita bhrata sab hoi,
sankat men puchhat nahin koi.
Svarmi ek hai as tumhari
ai haranu ab sankat bhari

Dhan nirdhan ko det sadai,
jo koi jancha so phal pahin.
Ustuti kehi vidhi karaun tumhari
shamahu nath ab chuk hamari

Shahkar ho sankat ke nashan,
vighna vinashan mangal karan.
Yogi yati muni dhyan lagavain,
sharad Narad shish nivavain.

Namo, namo jai namo Shivaye,
sur Brahmadik par na paye.
Jo yah path kare man lai,
tapar hot hain Shambhu sahai.

Rinya jo koi ho adhikari,
path kare so pavan-hari
Putra ho na ichchha kari koi,
nishchai Shiv prasad te hoi

Pandit triyodashi ko lavain,
dhyan purvak horn karavain.
Tryodashi vrita kare hamesh,
tan nahin take rahe kalesh.

Dhup dip naived chadhavai,
Shankar sanmukh path sunavai.
Janam Janam ke pap nashavai,
ahtvas Shivpur men pavai.
 
Kahe Ayodhya as tumhari,
jan sakal dukh harahu hamari.

 
DOHA

Nitya Nema kari Pratahi
Patha karau Chalis
Tum Meri Man Kamana
Purna Karahu Jagadish

Lord Shiva






Shiva T-Shirt