Friday, October 19, 2012

Kabhi Fursat Ho To Jagdambe Nirdhan Ke Ghar Bhi Aa Jana

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,
निर्धन के घर भी आ जाना ।
जो रुखा सूखा दिया हमें,
कभी इसका भोग लगा जाना ।

ना छत्र बना सका सोने का,
ना चुनरी तेरी सितारों जड़ी ।
ना बर्फी न पेड़ा माँ,
श्रद्वा के नयन विछाये खड़ा ।
इस अर्जी को न ठुकराना ।

जिस घर के दीये में तेल नहीं,
तेरी ज्योति जगाऊँ माँ कैसे ।
जहाँ मैं बैठूँ वहाँ बैठ कर हे माँ,
बच्चों का दिल बहला जाना ।

तू भाग्य बनाने वाली है,
मैं हूँ तकदीर का मारा माँ ।
हे दाती संभालो भिखारी को,
आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ।
मैं दोषी तू निर्दोष है माँ,
मेरे दोषों को भुला जाना ।

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,
निर्धन के घर भी आ जाना ।

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